गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

यार कितना हसीन है मेरा

यार कितना हसीन है मेरा
मुझको मेरे क़रीब रखता है

माँगता भी नहीं है ख़ुद्दारी
शौक़ भी तो अजीब रखता है

बात बढ़ने दो ज़रा देखें तो
कौन कैसा नसीब रखता है

पा के पाया भी न जाए जिसे
दिल तो ऐसा हबीब रखता है

लौट कर आ सके ना यूँँ डूबे
नब्ज़ भारी सलीब रखता है

शाम तन्हा रही ग़ज़ल बे-बहर
मुझको ज़ालिम ग़रीब रखता है

गुरुवार, 13 जून 2013

मैं सच्चा के तू सच्चा है

मैं सच्चा के तू सच्चा है
इन बातों में क्या रक्खा है

कौन उठाए सच का बोझा
झूठों का भी घर पक्का है

अपनी अपनी सच की सूरत
क्या जाने अब क्या सच्चा है

जीत हार सब झूठी बातें
... खेल खेल में अब सट्टा है

हिम-आलय की बर्फ़ खो गई
अब मौसम हक्का बक्का है

रविवार, 19 मई 2013

रस्ता बदल के देखिए

रस्ता बदल के देखिए 
 थोड़ा सँभल के देखिए

वो जाने किस घड़ी मिले
पलकों पे ढल के देखिए

क्यूँ रोशनी से फ़ासला
घर से निकल के देखिए

बहार ही बहार सब
... नज़र बदल के देखिए

मज़ा कहाँ यूँ ज़िस्त में
थोड़ा तो जल के देखिए

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

हर रूह में एक नूर ख़ुदा का दिया गया

जिस दिल की आग में मुझे जला दिया गया
उसमें सुना है तुझको भी रुस्वा किया गया

जब भी हैं माँगती ये हवाएँ हिसाब ए जाँ
कहते हैं जी लिए हैं के जैसे जिया गया

उतनी ही सुलग पाई कि जितनी नसीब थी
मसला ए ज़िंदगी से , सबब ये लिया गया

महँगी बड़ी है जान की क़ीमत न लगाना
हर रूह में एक नूर ख़ुदा का दिया गया

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

मगर

मीठा बड़ा है सर्दियों में धूप का आना मगर
खारा लगे है बादलों में इसका छुप जाना मगर

भार ढोती और रहती साँस है बेक़ौल हर दम
गाड़ियों में बैठ कोहरे से तो घबराना मगर

शनिवार, 26 जनवरी 2013

मेहमान

ख्वाबों में भी आया है तो एहसान है किया
दिल ने अजीब शख्स को मेहमान है किया .

क़ौल -ओ- क़रार की हमें उम्मीद ही नहीं
यह तिश्नगी है इसने क्यूँ हैरान है किया

तुझीसे पर्दादारी की कसमें जो खा रखीं,
अपनी ही कब्र-ए-रूह का सामान है किया

वक़्त वो तेरा था ज़माना ये मेरा है,पर्दादारी
बख्शी है ज़िन्दगी तो क्या एहसान है किया !!!

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

सुन ले

एक ग़ज़ल मेरी भी सुन ले
आ ज़रा कुछ तार बुन ले

चाहे मत कर तू वफाएं
दर्द के दो फूल चुन ले

सरहदों पर मर मिटा वो
चल उसी की आह सुन ले

कब कहाँ किसकी खता है
छोड़ सब तू अपनी गुन ले