करें क्या किसी की इजाज़त नहीं
सुनी होंगी तुम ने ये बातें कहीं
नहीं इश्क वो जो इबादत नहीं
नहीं शौक़ जीने या मरने का अब
करें क्या कि आती क़यामत नहीं
नया एक रिश्ता बना है मगर
ज़रा सी भी इस में शराफ़त नहीं
गुमां तेरे वादे का तुझ को रहा
हमें भी भुलाने की आदत नहीं
भला क्यूँ है तू इस कदर बेख़बर
ये दिल है तेरा कोई आफ़त नहीं