एक ग़ज़ल मेरी भी सुन ले
आ ज़रा कुछ तार बुन ले
चाहे मत कर तू वफाएं
दर्द के दो फूल चुन ले
सरहदों पर मर मिटा वो
चल उसी की आह सुन ले
कब कहाँ किसकी खता है
छोड़ सब तू अपनी गुन ले
आ ज़रा कुछ तार बुन ले
चाहे मत कर तू वफाएं
दर्द के दो फूल चुन ले
सरहदों पर मर मिटा वो
चल उसी की आह सुन ले
कब कहाँ किसकी खता है
छोड़ सब तू अपनी गुन ले
नूतन जी बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है, सभी अशआर शानदार और लाजवाब हैं, दो अशआर और जोड़ देतीं तो ग़ज़ल पूर्ण हो जाती. खैर मुझे बेहद पसंद आई दिली दाद कुबूलें.
जवाब देंहटाएंसादर
अरुन शर्मा
www.arunsblog.in
Sundar panktiyaan.
जवाब देंहटाएंयह सही रही ..
जवाब देंहटाएंलाजवाब !!