शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

मुश्किल बड़ी

असर पज़ीरी है मुश्किल बड़ी
सब कुछ ये समझे बुरी या भली

नज़र ओ नज़ारे थे दोनों जुदा
बेघर की चीखें खला सी पली

रंजिश सही है ग़ज़ल से मेरी
बहर के बिना ही ये जिद्द पे अड़ी

सफ़र ये शुरू हो गया तो मगर
बंद कमरे में घुटती रही ज़िन्दगी

किधर से चले और कहाँ तक गए
खबर क्या कहानी थी किसने गढ़ी

 असर पज़ीरी= sensitivity

2 टिप्‍पणियां:

  1. रंजिश सही है ग़ज़ल से मेरी
    बहर के बिना ही ये जिद्द पे अड़ी
    वाह क्या बात है बहुत खूब सूरत ग़ज़ल
    अरुन =www.arunsblog.in

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  2. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।

    ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...

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