शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

फ़रियाद करनी है

कई वीरानियाँ आबाद करनी है
अभी तो रौशनी आज़ाद करनी है

सियासत की हिमाकत पे न जाना
सभी को तिश्नगी बर्बाद करनी है

कहानी मुफलिसी की तुम सुनाते हो
किसी की यूँ शहादत याद करनी है ?

ज़रा सी बात पे रो के यूँ चिल्ला के
भला क्यूँ ज़िंदगी नाशाद करनी है

फ़ना होना नहीं मक़सूद -ए- जाँ लेकिन
तिरे लौट आने की फ़रियाद करनी है

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