शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

मुश्किल बड़ी

असर पज़ीरी है मुश्किल बड़ी
सब कुछ ये समझे बुरी या भली

नज़र ओ नज़ारे थे दोनों जुदा
बेघर की चीखें खला सी पली

रंजिश सही है ग़ज़ल से मेरी
बहर के बिना ही ये जिद्द पे अड़ी

सफ़र ये शुरू हो गया तो मगर
बंद कमरे में घुटती रही ज़िन्दगी

किधर से चले और कहाँ तक गए
खबर क्या कहानी थी किसने गढ़ी

 असर पज़ीरी= sensitivity

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

हर दर महकना चाहिए

कुछ कर गुज़रना चाहिए
मुझ को भी सपना चाहिए

जब रात ठहरी है यहीं
चंदा को तकना चाहिए ...

इस उम्र की दहलीज़ पर
मन का ही सुनना चाहिए

हर चंद एक सहरा यहाँ
बस अश्क थमना चाहिए

बरकत सभी को नसीब हो
हर दर महकना चाहिए

रविवार, 29 जुलाई 2012

हैरानियाँ

भला क्यूँ मुकद्दर पे हैरानियाँ हों
सदा आसमानी ही जब यारियाँ हों

बड़ी हों या छोटी रुलाया सभी ने
कभी तो ख़तम सारी मजबूरियाँ हों

न जाने क्या थे फ़लसफ़े उस शजर के
लगा झुक रहीं शर्म से टहनियाँ हों

कहो राब्ता रख के क्या होगा हासिल
नहीं जो वफ़ा के सिले दरमियाँ हों

बुधवार, 27 जून 2012

सुबह को भी है आना

क्या रंग है इंसां का
ये किसको पता लेकिन
मैं रंग-ए-इलाही हूँ
हर रंग से बेगाना

न हुस्न वो जलवा है
न शोख़ वो पैमा है
फिर भी मैं क्यूँ उसका हूँ
ये मुझको समझाना

मैं भी तो शामिल था
उसकी हर महफ़िल में
वो अक्स ही था मेरा
मैं ना उसको पहचाना

वो मिल ही जाएगा
वो जो है मेरा अपना
है शाम ढली लेकिन
सुबह को भी है आना .....!



गुरुवार, 24 मई 2012

चंद तारे मुझ तईं रहने भी दो


अबके रोशन एक दिया रहने भी दो
कब कहेगा कौन क्या कहने भी दो

हम जियें न बुज़दिलों के नाम से
बनके दरिया बारहां बहने भी दो
...
तप के सोना बन के दिखलाउंगी  मैं
सिलसिलों का दर्द है सहने भी दो

इक एक ही को तुम बुलाते जा रहे
चंद तारे मुझ तईं रहने भी दो

रविवार, 29 अप्रैल 2012

दुनिया नहीं रूकती

बहा ले जाएगा एक दिन हमें भी वक़्त का दरिया
किसी के छोड़ जाने से कभी दुनिया नहीं रूकती !

"सभी जो हौंसला रक्खें तो फिर हो रास्ते आसाँ "
कहा जो था ये तुम ने तो भला मैं क्यूँ कहीं रूकती !

सवाले हस्ती पे यूँ चौंकना लाज़िम था अपना भी
निशाँ -ए- नूर- ए- मौला जब जहाँ मिलता वहीँ रूकती?

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

किसने लिखीं

मैंने माँगी फूल पत्ती आंधियाँ किसने लिखीं ?
दास्तान -ए- हिज्र में वीरानियाँ किसने लिखीं ?

वो कौन से अलफ़ाज़ थे वो कौन सी फहरिस्त थी ?
मेरे मैं के सिलसिले , सरगोशियाँ किसने लिखीं ?

मैं हौंसला रखती मगर बेदर्द ने मारा मुझे
हाथ पे इस वक़्त के बेईमानियाँ किसने लिखीं ?

हैं शोखियाँ मौजूद अब भी राख पर न जाइए ...
सोचती हूँ रूह की रानाइयाँ किसने लिखीं ?

दास्तान -ए- हिज्र= जुदाई की कहानी
फ़हरिस्त= सूची
सरगोशियाँ= कानाफूसी
रानाइयाँ= सुन्दरता

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

फ़रियाद करनी है

कई वीरानियाँ आबाद करनी है
अभी तो रौशनी आज़ाद करनी है

सियासत की हिमाकत पे न जाना
सभी को तिश्नगी बर्बाद करनी है

कहानी मुफलिसी की तुम सुनाते हो
किसी की यूँ शहादत याद करनी है ?

ज़रा सी बात पे रो के यूँ चिल्ला के
भला क्यूँ ज़िंदगी नाशाद करनी है

फ़ना होना नहीं मक़सूद -ए- जाँ लेकिन
तिरे लौट आने की फ़रियाद करनी है

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

बड़ी उलझन है उलझी सी

नहीं जो हौंसला होता,
न तू काफ़िर हुआ होता |

सभी को भूल जाती मैं,
न कोई रतजगा होता |

न दी आवाज़ ही होती,
न कोई सिलसिला होता |

कहानी कौन कर पाता,
किसे कब कुछ पता होता |

ग़ज़ल तो बस ग़ज़ल होती,
न कोई ज़लज़ला होता |

न आती मौत इंसां को
न सोने को मिला होता |

बड़ी उलझन है उलझी सी,
न होती मैं तो क्या होता |