नहीं जो हौंसला होता,
न तू काफ़िर हुआ होता |
सभी को भूल जाती मैं,
न कोई रतजगा होता |
न दी आवाज़ ही होती,
न कोई सिलसिला होता |
कहानी कौन कर पाता,
किसे कब कुछ पता होता |
ग़ज़ल तो बस ग़ज़ल होती,
न कोई ज़लज़ला होता |
न आती मौत इंसां को
न सोने को मिला होता |
बड़ी उलझन है उलझी सी,
न होती मैं तो क्या होता |
खुबसूरत रचना.....
जवाब देंहटाएंbahut hi umda rachna,pahli baar aap ke blog par aana hua,mujhe gazalen bahut pasnd hai isliye ummid hai aap ki gazalen fir mujhe yhan bula legin,....mere blog par bhi aap ka swaagat hai,aaiyega....
जवाब देंहटाएंन होती तुम तो नूतन जी
जवाब देंहटाएंगजल यह बन नहीं पाती
सुन्दर अभिव्यक्ति......
नेता,कुत्ता और वेश्या
sundar rachna.....
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न दी आवाज़ ही होती,
न कोई सिलसिला होता
क्या बात है !
बड़ी उलझन है उलझी सी,
न होती मैं तो क्या होता
वाह !
नूतन जी
बहुत ख़ूब !
पिछली पोस्ट्स पर भी अच्छी ग़ज़लें पढ़वाने के लिए आभार !
हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बड़ी उलझन है उलझी सी,
जवाब देंहटाएंन होती मैं तो क्या होता
वाह बहुत अच्छा लिखती हैं आप
Very nice and good combination of love
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