किसी आवाज़ का मोहताज ना हो जाए तू,
है मुमकिन किसी को याद भी ना आए तू
सफ़र में होके मुसाफिर की तरह ही रहना,
क्या ज़रूरत किसी के दिल में उतर जाए तू
किया है उस से जो वादा तो निभा भी लेना,
दिल की बातों में आकर ना मुकर जाए तू।
बुरा नहीं यूँ बनाना नये रिश्ते लेकिन
अज़ल से हैं जो उन्हे ही निभा ना पाए तू
मरके बन जाना है गर्दिश का इक तारा लेकिन,
जीकर भी तो किसी घर का दिया जलाए तू
बदल रहा है ज़माना ज़रा तू भी तो बदल
क्यूँ बूढ़ी रस्म का हर वक़्त जशन मनाए तू
मरके बन जाना है गर्दिश का इक तारा लेकिन,
जवाब देंहटाएंजीकर भी तो किसी घर का दिया जलाए तू
सुंदर रचना । शुभकामनाएँ ।