मुकम्मल ज़िन्दगी है हर ख़ुशी है,
मगर तेरी कमी तो आज भी है।
उठा था इक कहीं तूफ़ान सा जब,
जाना मंज़िल कहीं खो चुकी हैअभी जीने है मुझ को ख़्वाब कितने,
फिर ये ज़िंदगी यूं कयूं रुकी है।
नहीं मिलता समंदर का निशां,
नदी को राह तो हरसूं मिली है,
बुरा है उस पर हंसना जो झुका है,
नज़र नीची मगर सोच बड़ी है।
हर शै में जो रोशन है 'शिरीन'
एक नूर तुझ में भी वही है !
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurat.
जवाब देंहटाएंbahut sunder abhibyakti.sunder shabdon main likhi hui .badhaai aapko.
जवाब देंहटाएंplease visit my blog
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सुन्दर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंhttp://sarapyar.blogspot.com