ग़ज़लों की सौग़ात
गुरुवार, 10 जनवरी 2013
रौशनी
जाने कब कैसे, मक़सद खो गया
जीए जाते थे , मुक़द्दर सो गया ..
रात काली ,थी जो सिरहाने पड़ी
ख्वाब आया, रौशनी को बो गया
1 टिप्पणी:
Vinay
12 जनवरी 2013 को 8:23 am बजे
अति सुंदर कृति
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