सोमवार, 12 दिसंबर 2011

इजाज़त नहीं ...

किसी से भी हम को शिकायत नहीं
करें क्या किसी की इजाज़त नहीं

सुनी होंगी तुम ने ये बातें कहीं
नहीं इश्क वो जो इबादत नहीं

नहीं शौक़ जीने या मरने का अब
करें क्या कि आती क़यामत नहीं

नया एक रिश्ता बना है मगर
ज़रा सी भी इस में शराफ़त नहीं

गुमां तेरे वादे का तुझ को रहा
हमें भी भुलाने की आदत नहीं

भला क्यूँ है तू इस कदर बेख़बर
ये दिल है तेरा कोई आफ़त नहीं

17 टिप्‍पणियां:

  1. गुमां तुझ को तेरे वादे का रहा
    भुलाने की हम को भी आदत नहीं

    जाने क्यूँ है भला तू यूँ बेखबर
    तेरा दिल है ये दिल कोई आफ़त नहीं
    वाह ...बहुत खूब ।

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  2. जीने मरने का ही शौक जाता रहा
    आती ही मगर ये क़यामत नहीं

    वाह ..बहुत खूब

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  3. सुनी होंगी तुम ने ये बातें कहीं
    नहीं इश्क वो जो इबादत नहीं

    क्या बात है....बहुत खूब!

    सादर

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  4. गुमां तुझ को तेरे वादे का रहा
    भुलाने की हम को भी आदत नहीं

    बहुत खूब!!

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  5. नया एक रिश्ता बना है मगर
    ज़रा सी भी इस में शराफ़त नहीं.......
    Aaj ki duniya ki hakikat.....Wah !!!

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  6. सुनी होंगी तुम ने ये बातें कहीं
    नहीं इश्क वो जो इबादत नहीं
    ..
    बहुत खूब - बधाई

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  7. So very good you write here real voice of heart i think you miss your beloved but Ghazel is good.

    lot of thank
    v.p.singh
    M.09971224023

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  8. असीम दर्द को समाहित की हुई रचना के सम्मान में कुछ पंक्तियाँ--
    अरे हम सितम और अब क्यों सहें,
    हमें और सहने की आदत नहीं।
    अबला समझ तुमने लूटा बहुत,
    किसी भी तरह यह शराफत नहीं।
    सहन जो किया,थी मुहब्बत मुझे,
    तुम्हें किन्तु मुझसे मुहब्बत न थी।

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  9. सार्थक प्रस्तुति, आभार.

    पधारें मेरे ब्लॉग पर भी और अपने स्नेहाशीष से अभिसिंचित करें मेरी लेखनी को, आभारी होऊंगा /

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  10. उम्दा... खुबसूरत अशआर....
    हार्दिक बधाई...

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  11. "गुमां तेरे वादे का तुझ को रहा
    हमें भी भुलाने की आदत नहीं"

    बहुत खूब !

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