यार कितना हसीन है मेरा
मुझको मेरे क़रीब रखता है
माँगता भी नहीं है ख़ुद्दारी
शौक़ भी तो अजीब रखता है
बात बढ़ने दो ज़रा देखें तो
कौन कैसा नसीब रखता है
पा के पाया भी न जाए जिसे
दिल तो ऐसा हबीब रखता है
लौट कर आ सके ना यूँँ डूबे
नब्ज़ भारी सलीब रखता है
शाम तन्हा रही ग़ज़ल बे-बहर
मुझको ज़ालिम ग़रीब रखता है
मुझको मेरे क़रीब रखता है
माँगता भी नहीं है ख़ुद्दारी
शौक़ भी तो अजीब रखता है
बात बढ़ने दो ज़रा देखें तो
कौन कैसा नसीब रखता है
पा के पाया भी न जाए जिसे
दिल तो ऐसा हबीब रखता है
लौट कर आ सके ना यूँँ डूबे
नब्ज़ भारी सलीब रखता है
शाम तन्हा रही ग़ज़ल बे-बहर
मुझको ज़ालिम ग़रीब रखता है