बुधवार, 27 जून 2012

सुबह को भी है आना

क्या रंग है इंसां का
ये किसको पता लेकिन
मैं रंग-ए-इलाही हूँ
हर रंग से बेगाना

न हुस्न वो जलवा है
न शोख़ वो पैमा है
फिर भी मैं क्यूँ उसका हूँ
ये मुझको समझाना

मैं भी तो शामिल था
उसकी हर महफ़िल में
वो अक्स ही था मेरा
मैं ना उसको पहचाना

वो मिल ही जाएगा
वो जो है मेरा अपना
है शाम ढली लेकिन
सुबह को भी है आना .....!